अध्यात्म

 परिवर्तिनी एकादशी पर करें भगवान विष्णु-लक्ष्मी का पूजन

 
नई दिल्ली

भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी को परिवर्तिनी एकादशी के नाम से जाना जाता है। इस एकादशी के दिन शेष शैया पर निद्रा मग्न भगवान विष्णु अपनी करवट बदलते हैं। इसलिए इसे परिवर्तिनी एकादशी कहा जाता है। यह एकादशी 17 सितंबर 2021 शुक्रवार को आ रही है। इस एकादशी को अनेक नामों से जाना जाता है जैसे पद्मा एकादशी, जलझूलनी एकादशी, वामन एकादशी, डोल ग्यारस आदि। इस एकादशी के दिन भगवान विष्णु के साथ मां लक्ष्मी का पूजन करने से विशेष सुख-समृद्धि की प्राप्ति होती है। इस दिन भगवान श्रीकृष्ण की पूजा करने का भी विधान है। इस दिन माता यशोदा का जलवा पूजन किया गया था। इसे पद्मा एकादशी भी कहा जाता है क्योंकि इस दिन मां लक्ष्मी का पूजन करने से आर्थिक तंगी दूर होती है।
 
परिवर्तिनी एकादशी से एक दिन पूर्व दशमी के दिन व्रती रात्रि भोजन का त्याग करें। रात्रि में दंत धावन करे ताकिमुख में अन्न का कोई कण बाकी न रहे। एकादशी के दिन सूर्योदय पूर्व उठकर भगवान विष्णु के समक्ष हाथ में जल, अक्षत, पुष्प और द्रव्य लेकर एकादशी व्रत का संकल्प लें। यह संकल्प सकाम और निष्काम दोनों तरह का हो सकता है। इसके बाद भगवान विष्णु और मां लक्ष्मी का षोडशोपचार पूजन करें। सायंकाल तुलसी के पौधे के समक्ष दीप प्रज्जवलित करें। रात्रि जागरण करते हुए भगवान का भजन करें। दूसरे दिन द्वादशी पर ब्राह्मणों को भोजन करवाकर उचित दान-दक्षिणा देकर व्रत का पारण करें। इसके बाद भोजन ग्रहण करें। इस एकादशी पर बालन ककड़ी प्रसाद के रूप में ग्रहण करनी चाहिए।
 

परिवर्तिनी एकादशी की कथा

परिवर्तिनी एकादशी पर भगवान विष्णु के वामन अवतार की कथा सुनी जाती है। अपने वामन अवतार में भगवान विष्णु ने राजा बलि की परीक्षा ली थी। राजा बलि ने तीनों लोकों पर अपना अधिकार कर लिया था, लेकिन उसमें एक गुण यह था किवह अपने पास आए किसी भी ब्राह्मण को खाली हाथ नहीं जाने देता थ। उसे दान अवश्य देता था। दैत्य गुरु शुक्राचार्य ने बलि को भगवान विष्णु की चाल से अवगत भी करवाया, लेकिन बावजूद उसके बलि ने वामन स्वरूप भगवान विष्णु को तीन पग जमीन देने का वचन दे दिया। दो पगों में ही भगवान विष्णु ने समस्त लोकों को नाप दिया तीसरे पग के लिए कुछ नहीं बचा तो बलि ने अपना वचन पूरा करते हुए अपना शीष उनके पग के नीचे कर दिया। भगवान विष्णु की कृपा से बलि रसातल में पाताल लोक का राजा होकर वहां निवास करने लगा, लेकिन साथ ही उसने भगवान विष्णु को भी अपने यहां रहने के लिए वचनबद्ध कर लिया था।

एकादशी का फल

भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की इस एकादशी को करने से वाजपेय यज्ञ के समान फल मिलता है।
इससे जीवन से समस्त संकटों, कष्टों का नाश हो जाता है और व्यक्ति को मृत्यु के पश्चात मोक्ष प्राप्त हो जाता है।
इस दिन मां लक्ष्मी को 108 गुलाब के पुष्प अर्पित करने से सुखों में वृद्धि होती है।
जीवन में मान-सम्मान, प्रतिष्ठा, पद, धन-धान्य की प्राप्ति के लिए यह एकादशी प्रत्येक मनुष्य को करना चाहिए।
सुखद दांपत्य की कामना से भी यह व्रत किया जाना चाहिए।
इस एकादशी के दिन मां लक्ष्मी का पूजन करने से अष्ट लक्ष्मी की प्राप्ति सहज हो जाती है।

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