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नागरिकता संशोधन विधेयक: विपक्ष के साथ अपनों के भी निशाने पर बीजेपी

 
नई दिल्ली 

संसद का शीतकालीन सत्र अब तक काफी हंगामेदार और आरोप-प्रत्यारोप से भरा रहा है। सोमवार को भी सदन में शोर-शराबे, हंगामे और विरोध-प्रदर्शन का नजारा दिखने की आशंका है। चार विपक्षी पार्टियां और बीजेपी की दो सहयोगी पार्टियां नागरिकता विधेयक (सिटिजनशिप बिल) में बदलाव का विरोध कर रही हैं। विरोध करनेवाली पार्टियों में कांग्रेस, टीएमसी, सीपीआई (एम), एसपी के साथ बीजेपी की दो सहयोगी पार्टियां असम गण परिषद और और शिवसेना भी हैं। इस बिल को लेकर क्यों हो रहा विरोध और क्या है विधेयक में जानें यहां… 
 
क्या है सिटिजनशिप बिल 2016 
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कुछ दिन पहले ही अपनी रैली में कहा था कि उनकी सरकार प्रस्तावित कानून को संसद की मंजूरी दिलाने की दिशा में काम कर रही है। इसके बाद असम में कई जगह विरोध भी हुए। नागरिकता (संशोधन) विधेयक 2016, नागरिकता अधिनियम 1955 में संशोधन करेगा और अफगानिस्तान, पाकिस्तान तथा बांग्लादेश के हिन्दू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी तथा ईसाई धर्म के मानने वाले अल्पसंख्यक समुदायों को भारत में छह साल बिताने के बाद नागरिकता देने के लिए लाया गया है। 
 

यह है धार्मिक ऐंगल 
इस बिल के विरोध का एक धार्मिक ऐंगल भी है। बिल में संशोधन के जरिए बीजेपी रहने की न्यूनतम सीमा को घटाकर 6 साल करना चाहती है। बिल में पड़ोसी देशों के धार्मिक अल्पसंख्यक जिनमें अफगानिस्तान, पाकिस्तान, बांग्लादेश से आए सिख, जैन, हिंदू, पारसी और ईसाई शरणार्थी हैं को भारतीय नागरिकता देने के लिए संशोधन की सिफारिश है। इसके तहत पूर्व में 11 साल की तय सीमा को कम कर 6 साल करने की सिफारिश की गई है। विपक्षी पार्टियों का इस बिल के विरोध में प्रमुख तर्क है कि इसमें धार्मिक पहचान को प्रमुखता दी गई है। विपक्ष का यह भी तर्क है कि नागरिकता संशोधन के लिए धार्मिक पहचान को आधार बनाना संविधान के आर्टिकल 14 की मूल भावना के खिलाफ है। आर्टिकल 14 समता के अधिकार की व्याख्या करता है। 

पहचान का संकट है विरोध का दूसरा कारण 
असम गण परिषद और शिवसेना इस बिल का विरोध कर रही हैं और उनका तर्क है कि असम में बड़ी संख्या में आए बांग्लादेशी हिंदुओं को मान्यता देने के बाद मूल निवासियों के लिए अस्तित्व का संकट पैदा हो जाएगा। दोनों ही पार्टियों का तर्क है कि अगर संशोधन पारित हो जाता है तो असम के मूल निवासियों की धार्मिक, क्षेत्रीय, सांस्कृतिक और मौलिक पहचान पर विपरीत असर होगा। शिवसेना प्रवक्ता संजय राउत का कहना है, 'असम अकॉर्ड के जरिए स्थानीय लोगों को जो सांस्कृतिक संरक्षण मिला है, इस बिल के बाद उस पर ठेस पहुंचेगी। अगर यह बिल पास होता है तो सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में तैयार हो रहा असम सिटिजन रजिस्टर का काम भी प्रभावित होगा।' 

बिल में कई अजीब प्रावधान, जिनका हो रहा विरोध 
इस बिल में कई ऐसे प्रावधान हैं जिन्हें अजीब और बहुत सख्त कहा जा सकता है। ओवरसीज सिटिजन ऑफ इंडिया (ओसीआई) रजिस्ट्रेशन के तहत भारत में रहनेवाले दूसरे देश के नागरिकों के लिए कानून के पालन के लिए बेहद सख्ती बरती जा रही है। छोटे से अपराध जैसे नो-पार्किंग में गाड़ी पार्क करने के अपराध के कारण भी निवासियों के ओसीआई स्टेट्स को रद्द किया जा सकता है। 
 

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