मध्य प्रदेश

शिवराज सरकार से ज्यादा ब्याज चुकाएगी कमलनाथ सरकार

 भोपाल

यह चुनौती ही थी कि कमलनाथ सरकार अगले कुछ सप्ताह बाद होने वाले लोकसभा चुनावों के लिए ऐसा बजट पेश करे जिससे उनकी सरकार की एक बेहतर छवि बन पाए। उन्होंने जो वायदे विधानसभा चुनाव में किए उनका एक रोडमैप बने, भले ही चार महीने सही। इसलिए इस बजट को कैसे लिया जाना चाहिए, यह खुद उनके लिए और उनके अधिकारियों के लिए भी एक चुनौती ही रहा होगा। हालांकि पंद्रह साल बाद सत्ता में आई कांग्रेस के मन में यह कसक जरूर होगी कि वह पूरा पूरा बजट क्यों पेश नहीं कर पाई। 

कमलनाथ सरकार के वित्त मंत्री तरुण भनोट ने 122 करोड़ 21 लाख का सप्लीमेंट्री बजट, 89438 करोड़ का लेखानुदान पेश करने के साथ ही वर्ष 2019-20 के लिए 2 लाख 23 हजार 651 करोड़ रुपए से अधिक का बजट अनुमान भी प्रस्‍तुत किया। हालांकि वित्त मंत्री ने कहा कि फिलहाल चार महीने के खर्च के लिए राशि की व्यवस्था का खाका पेश किया गया है। लोकसभा चुनाव के बाद सरकार का पूर्ण बजट पेश किया जाएगा। बजट पुस्तिकाओं में सरकार ने दो तरह के प्रावधान किए हैं, एक संपूर्ण वर्ष के लिए है और दूसरा 1 अप्रैल से लेकर 31 जुलाई तक के लिए है।

भारतीय परंपरा में ब्याज को बिलकुल भी ठीक नहीं माना गया है। सूदखोरी पर अनेक फिल्मों में यह संदेश दिया गया है कि उधार बिलकुल भी ठीक नहीं होता और उसका ब्याज तो देने वाले और यहां तक कि लेने वाले के लिए भी बिलकुल उचित नहीं है। अलबत्ता सरकारें इस सिद्धांत को बिलकुल भी नहीं मानतीं, और वह कहीं से भी उधार लेने को लालायित रहती हैं। मध्यप्रदेश की पिछली सरकार भी ब्याज के रूप में एक बड़ी रकम चुकाती रही। शिवरा​ज सिंह चौहान ने अपने अंतिम बजट में ब्याज के रूप में 25342 करोड़ रुपए का प्रावधान किया था, और कमलनाथ सरकार इससे कुछ कदम आगे बढ़ी है।       

बुधवार को पेश किए गए बजट में ब्‍याज के लिए 28378 करोड़ रुपए का प्रावधान किया गया है। इससे जाहिर होता है कि प्रदेश की जनता को एक बार कर्जे पर ब्याज चुकाने में पसीना आने वाला है। हालांकि राजनीतिक रूप से जरूर इसे पिछली सरकारों की नीतियों का दोष ही माना जाएगा, और यह भी कहा जाएगा कि हालात इतने खराब हैं कि उन्हें एकदम कोई संजीवनी देकर नहीं बदला जा सकता लेकिन क्या जब कमलनाथ सरकार को पूरा बजट पेश करने का मौका मिलेगा, तब वह इसके अलावा कोई ऐसा मॉडल पेश कर पाएंगे, जिससे ब्याज के रूप में दी जाने वाली इस बड़ी रकम को बढ़ाने के बजाए घटाया जा सके। वह इसलिए भी क्योंकि इसी बजट से पता चलता है कि पिछली सरकार ने 31892 करोड़ रुपए का कर्ज लिया था, इस साल यह राशि बढ़कर 40601 करोड़ रुपए होने वाली है। 

पोषण आहार का क्या होगा: पोषण आहार मध्यप्रदेश के लिए एक अहम मुद्दा इसलिए है क्योंकि राज्य पर सबसे ज्यादा बच्चों के कुपोषित होने का कलंक है। शिवराज सिंह सरकार को इस मुद्दे पर बार-बार घेरा गया। केवल आंकड़ों की बदइंतजामी के लिए ही नहीं, पोषण आहार में कई तरह की गड़बड़ियों के लिए भी। 2018-19 के बजट में पोषण आहार पर 1793 करोड़ रुपए का प्रावधान किया गया था, लेकिन पुनरीक्षित बजट में यह घटकर 1343 करोड़ रुपए ही रह गया। यानी करीब 450 करोड़ रुपए की कमी कर दी गई। हालांकि महिला एवं बाल विकास विभाग के कुल बजट में ज्यादा राशि देकर एक बेहतर संकेत दिया गया। शिवराज सरकार में जहां 4315 करोड़ रुपए आवंटित किए गए थे, वहीं इस साल करीब 5200 करोड़ दिए गए हैं।   

पोषण आहार पर कमलनाथ सरकार ने पिछली सरकार से भी कम बजट आवंटन किया है। इसके लिए कुल 1581 करोड़ रुपए ही रखे गए हैं यानी पिछले बजट अनुमान से तकरीबन 200 करोड़ रुपए कम। क्या पोषण आहार पर राशि बढ़ाकर यह संदेश नहीं दिया जा सकता था कि हम मध्यप्रदेश के सबसे जरूरी विषय पर सबसे ज्यादा बजट आवंटन कर उन आंकड़ों को सबसे पहले दुरुस्त करेंगे जिनके लिए हमारी पूरे देश में बदनामी होती है।  

​केवल पोषण ही नहीं, प्राथमिक शिक्षा में भी पिछले बजट पूर्वानुमान से 5 प्रतिशत की कम राशि का आवंटन किया गया है। इस सरकार ने प्राथमिक शिक्षा पर 1037 करोड़ रुपए की राशि कम आवंटित की है। शिवराजसिंह ने इसके लिए पिछले साल 19873 करोड़ रुपए जारी किए थे, लेकिन इस साल यह रकम 18836 करोड़ रुपए ही है। उम्मीद की जानी चाहिए कि सरकार चार महीने बाद जब पूरा बजट लेकर आएगी तो स्वास्थ्य शिक्षा जैसे मसलों पर पिछली सरकार से कई गुना ज्यादा बजट का आवंटन किया जाएगा।

 

 

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