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भारत में ‘हम देखेंगे’ के ‘एंटी हिंदू’ विवाद पर फैज अहमज फैज की बेटी बोलीं- यह बहुत फनी

पाकिस्तान
पाकिस्तान के मशहूर शायर फैज अहमद फैज के 'हम देखेंगे' नज्म पर भारत में हुए विवाद पर शायर की बेटी सलीमा हाशमी का कहना है कि वह इस नज्म के 'गैर हिंदू' होने पर हुए विवाद दुखी नहीं हैं, बल्कि यह बहुत फनी है. साथ ही उन्होंने कहा कि उनके पिता के शब्द उन लोगों के लिए हमेशा मदद करेंगे जिन्हें अपनी बात कहने की जरुरत है.

भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान-कानपुर (आईआईटी-के) ने उर्दू शायर फैज अहमद फैज की नज्म 'हम भी देखेंगे' को लेकर एक जांच समिति गठित कर दी है. फैकल्टी सदस्यों और अन्य लोगों की शिकायत पर जांच समिति गठित की गई है. फैकल्टी के सदस्यों की शिकायत थी कि नागरिकता संशोधन अधिनियम (सीएए) के खिलाफ प्रदर्शन के दौरान छात्रों ने यह 'हिंदू विरोधी गीत' गाया था.

आईआईटी कानपुर की ओर से समिति के गठन पर कहा गया कि सारी शिकायतों की जांच की जा रही है. शिकायतों में यह भी की वहां पर कोई नारे लगाए गए थे या नहीं. कोई भड़काऊ भाषण दिया गया या नहीं. सारे मामलों की जांच की जा रही है. जब जांच के निष्कर्ष आने के बाद दोषियों पर सख्त कार्रवाई करेंगे.

विवाद से चिंतित नहींः सलीमा

फैज अहमद फैज की बेटी सलीमा हाशमी का पूरे विवाद पर कहना है कि वह इस विवाद से दुखी नहीं हैं. नागरिकता संशोधन अधिनियम (सीएए) के विरोध में छात्रों द्वारा कैंपस में 'हम देखेंगे' गाए जाने के खिलाफ शिकायत की जांच के लिए एक जांच समिति बनाए जाने के बारे में पूछे जाने पर सलीमा हाशमी ने गुरुवार को कहा कि वह इस विवाद से चिंतित नहीं हैं क्योंकि यह अंततः नेतृत्व कर सकती है. फैज के शब्दों में उन लोगों को सम्मोहित करने की क्षमता है जो कविता के आलोचक हैं.

पीटीआई के साथ एक खास इंटरव्यू में सलीमा हाशमी ने कहा कि कविता के मैसेज को लेकर लोगों की एक समिति जांच कर रही है, यह बुरा तो नहीं है, यह बहुत फनी है. इसको अलग नजरिए से देखा जा सकता है, हो सकता है कि वे उर्दू कविता में दिलचस्पी ले रहे हों. फैज के शब्दों की ताकत को कम नहीं आंका जाना चाहिए.

'कविताएं सीमाओं तक सीमित नहीं'
हाशमी ने कहा कि कविताएं सीमाओं या भाषा तक सीमित नहीं होतीं और यह उनके लिए कारगर होती हैं जिन्हें नए शब्दों की आवश्यकता होती है. सलीमा हाशमी खुद बहुमुखी प्रतिभा की धनी हैं. वह पेंटर होने के साथ-साथ ऑर्ट प्रोफेसर रही हैं.

उन्होंने आगे कहा कि यह आश्चर्य की बात नहीं है कि फैज बॉर्डर के इस तरफ या उस तरफ कितने प्रासंगिक हैं. मुझे कुछ साल पहले यह बताया गया था नेपाल में राजशाही के खिलाफ लोकतांत्रिक संघर्ष के दौरान भी यह कविता गाई गई थी. मैं मानती हूं कि कवियों और उनके शब्द जहां भी जरूरत होती है, काम आते हैं. वे ऐसे शब्द प्रदान करते हैं जो लोग खुद से नहीं खोज पाते.

1979 में पूर्व पाकिस्तानी जनरल जिया-उल-हक की तानाशाही के खिलाफ विरोध करने के लिए लिखी गई कविता में कट्टरता पर हमला करने के लिए इस्लामी रूपकों का चतुराई से इस्तेमाल किया गया है.

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